बेगम
मरकर भी तुझको देखते रहने की हसरत में...
आखें भी किसी को अमानत में दे जायेंगे हम !
कभी रोटी के टुकड़ों में..
कभी सालन के प्याले में..
तेरे जुल्फों का दीदार बेगम..
हर निवाले में
तेरे वादे अगर सच्चे होते
तो आज हमारे भी अपने दो बच्चे होते
कोई तो होगा ??? जो मेरी पोस्ट देख कर ..
खुशी से #Mobile चूम लेता होगा .
मुमकिन है मेरे किरदार में बहुत सी कमियां होंगी,
पर शुक्र है किसी के जज्बात से खेलने का हुनर नही आया...
वो मोहब्बत हमसे कुछ इस तरह से करते है..🌹🍃🌹
बात नहीं करते हमसे मगर मेरी शायरी का इंतजार करते है।.
"मोहब्बत कभी ख़त्म नही होती..❤
सिर्फ़ बढ़ती है....
कभी #सुकून बन कर, कभी #दर्द
बन कर..."
रिश्तों को कुछ इस तरह
बचा लिया करो....!
कभी मान लिया करो तो
कभी मना लिया करो
रोज़ सहती हैं जो कोठों में हवस के मंजर..
हम दरिन्दे न होते तो वो माँयें होतीं...
एक अनमोल रिश्ता
लाइफ में कोई ऐसा भी होना चाहिए
जिससे हम अपनी सारी बाते शेयर कर सके..!!
हुकुमत के बादशाह थे कुछ दोस्त यहां,
फिर उनको बेगम मिल गई और
जिंदगी रामू काका सी हो गई ।
"बरसात गिरी और कानों में "इतना" ही कह गई कि...
गर्मी किसी की भी हो "हमेशा" नहीं रहती...!
है छोटी सी ज़िन्दगी...
तकरारें किस लिए,_
रहो एक दूसरे के
दिलों में._
ये दीवारें किस लिये
बात लगाव और एहसास की होती है,
वरना मैसेज तो कंपनी वाले भी कर देते है।
सम्बन्धों की गहराई का हुनर
पेडों से सिखिये.,
जड़ों में जख्म लगते ही,
शाखें सूख जाती हैं
सब्र कर जरा ए दिल,
ख़ुशी का पहर भी आएगा..!!
ढूँढ़ता रहा तू जिसको,
उसका शहर भी आएगा..!!
दिल में चाहत का होना जरूरी है जनाब,
याद तो, उधार लेने-देने वाले भी करते हैं
एक बात बोलूँ...बड़ी बरकत है तेरे ईश्क में........
:जब से हुआ है...बढ़ता ही ज़ा रहा है..
काश घर मेरा....तेरे घर के करीब होता...
बात करना ना सही तुझे रोज... देखना तो नसीब होता..
छू जाते हो तुम मुझे कितनी ही दफ़ा ख्वाब बनकर.....
ये दुनिया तो खामखां कहती है कि तुम मेरे नसीब में नहीँ
मैं तेरी रात के...पिछले पहर का लम्हा हूँ...
जो हो सके तो कभी जाग कर गुज़ार मुझे.
छिड़क कर होंठों पर
हल्की सी हँसी..
उसने ख़ुद को ...
अोरो से हसीन बना लिया..
मेरे दिल ने अपनी वसीयत मे लिखा है
"मेरा कफन उसी दुकान से लाना जहां से वो अपनी शादी का जोड़ा लाएगी..!!
Father’s Day Special
तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है,
और तू मेरे गांव को गँवार कहता है
ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है
तू चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है
थक गया है हर शख़्स काम करते करते
तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है।
गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास !!
तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है
मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं
तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है
जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा,
तू उन माँ बाप को अब भार कहता है
वो मिलने आते थे तो कलेजा साथ लाते थे,
तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है
बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें
तु अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है
बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में
पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है
अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं
तू इस नये दौर को संस्कार कहता है *.
कद्र करो अगर नसीब से रहते हो
:: साथ बाप के::
वो ना रहे तो सगे भी नही पूछेगे
::हालात आपके
मेरे भी कदम रुक गए सिंदूर देखकर ..
उसने भी अपनी कार का शीशा चढ़ा लिया.
सब कुछ हासिल नहीं होता जिंदगी में यहाँ,
किसी का "काश" तो किसी का "अगर" रह ही जाता है !
आँखों में जो पानी है..!
हुस्न वालों की ये मेहरबानी हैं..!
आप क्यों सर झुकाए बैठे हो
"साहब"
क्या आपकी भी यही कहानी है..
मैं लब हूं मेरी बात हो तुम,
मैं तब हूं,जब मेरे साथ हो तुम
क्यों लोग झूठ-मूठ के देते हैं दिलासे
वादे से साफ-साफ मुकर क्यों नहीं जाते
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