सवाल
ना जाने क्या जवाब देते तुम ...
इसलिए सवाल ही नहीं पूछा ...
तुम्हे देखने पर ....जो मिलता है ...
सारा मसला ....उसी सुकून का है...
तुम मूरत बनो मेरे मंदिर की..!!
मैं तुम्हारा कपाट न बन जाऊं तो कहना...
मेरा झुकना और तेरा खुदा हो जाना...
अच्छा नहीं है इतना भी बड़ा हो जाना...
सब अपने अपने नज़रिए की बात है...
वाक़िफ़ तुम भी हो वाक़िफ़ हम भी हैं..
छांव उसे समझ आई ही नहीं...
उसने धूप नहीं देखी थी...!!
काश तुम पूछो की...मुझसे क्या चाहिये,,,,,,,,
मैं पकडू बस तेरा हाथ और कहूँ.....
सिर्फ तेरा साथ चाहिये,,,,,
जिंदगी और किस्मत से ज्यादा सवाल करना फिजूल है...
भला सवाल किसे पसंद होते है...!!
तारीख़ें आगे पीछे भी हो जाती है कभी कभार...
बच्चे घर आ जाते है... माँ त्यौहार मना लेती है...!!
माँ की अज़मत के बारे मे क्या पूछते
हो साहब,,
अगर आवाज़ लगादे तो नमाज़ तोड़ने
का हुक्म है,
जिसकी आँखों में शरारत थी, वो महबूबा थी,
ये जो आंखे लाल है,
ये घरवाली है
विधाता की अदालत मे वक़ालत बडी न्यारी है..
ख़ामोश रहिये, कर्म किजिये सबका मुक़दमा जारी है.
इंसानियत ही इंसानों का ईमान हो जाये
मैं तेरा महीना बनूं सावन का
तू मेरा माह-ए-रमजान हो जाये
बचपन
बचपन मे भारी दुपहरी में
नाप आते थे सारा मोहल्ला
जब से डीग्री समझ मे आयी
पाव जलने लगे
तमाशा बन गयी है जिंदगी,
कुछ कहे तो भी बुरे और
कुछ ना कहे तो भी बुरे !!
कोई आए तो कोई बात बने
शेर कहने के कुछ हालात बने
कोशिशें कर रहे हैं हम भी "साहब"
देखिए कब तलक ये बात बने...!
जख्म खुद बता देंगे तीर किसने मारा है
हम कहां कहते है ये काम तुम्हारा है
ख़ुद को ख़ुद ही संभाल कर चलें,
जगह-जगह पर गिरी है लोगों की सोच
आईना कब किसको, सच बता पाया है...,
जब देखा दायाँ तो, बायाँ ही नजर आया है !”
तय है बदलना, हर चीज बदलती है इस जहां में..
किसी का दिल बदल गया, किसी के दिन बदल गए..
हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे
.#Bpl वाला कोई
.#सब्सिडी चाहता हो जैसे!!
(एक गरीब प्रेमी
"बच्चा हुआ है!" और "बाॅडी कितने बजे उठायेंगे??"
के बीच के वहम को ही हम सब "जीवन" कहते हैं
"जब भी पिया है, पत्थरों को फोड़ कर पिया है।.....
ऐ समंदर! बून्द भर एहसान नहीं तेरा मुझ पर।।"
ये जो
माँ की मोहब्बत होती है ना,ये
सब मोहब्बतों की माँ होती है
काश तुम समझ पाते मेरे अनकहे अल्फ़ाज़ों को,,,
तो ये एहसास स्याही और काग़ज़ के मोहताज ना होते...
बेवजह इल्ज़ाम लग जाए तो क्या कीजिये,,,
फिर यूँ कीजिये कि वो गुनाह कर ही लीजिये..
सुनो...
चलो एक कप चाय बनाते हैं..!!
तुम चीनी बन कर घूल जाना
हम पत्ती बनकर रंग जमाते है....!
जब भी आती है जला के ही जाती है..!!
याद, दिन और रात समझती ही नहीं
_*किसी चीज की कीमत यह है कि
आप उसके बदले कितनी जिंदगी लगा देते हैं*_
कौन फिरता है अब गली मोहल्लों में, इश्क अब डिजिटल हो गया है...!
कौन करता है अब बातें रूह की, इश्क अब फिजीकल हो गया है ....!!
तुझसे नाराज होकर, तुझसे ही बात करने का मन..!!
ये दिल का सिलसिला भी, कभी ना समझ पाए हम....!!!!
तुम्हें याद ही न आऊँ ये है और बात वर्ना..!!
मैं नहीं हूँ दूर इतनी कि .सलाम तक न पहुँचे....!
कोई पसंद आए वह प्रेम नहीं..!!
सारी उम्र वही पसंद रहे वो प्रेम है....!!
सारे के सारे क्यों नहीं होते मेरे..!!
क्यों तुम थोड़े इसके थोड़े उसके रहते हो...
" ख़ुदखुशी हमेशा जिस्म ही नहीं करते ,
कुछ ख़्याल समय की चौखट पर यूँ हीं
झूल जाया करते हैं
ज़ाया ना करो अपने अल्फाज़ हर किसी के लिए...
थोड़ा ख़ामोश रह कर भी देखो कि तुम्हें समझता कौन है...!!
बस इतनी सी दूरी है मेरे और उसके बीच
जितनी एक तारे की दूसरे तारे से
क्या हसीन इत्तफ़ाक था तेरी गली में आने का...
.Madam
किसी काम से आए थे...
........किसी काम के न रहे....!!!
ये समझ के माना है सच तुम्हारी बातों को
इतने ख़ूबसूरत लब झूट कैसे बोलेंगे..
शहर
अजनबी हूँ आज, शायद कल अपना लगूं,
रफ़्ता-रफ़्ता क्या पता, तुमको भी अच्छा लगूं...
अभी तक देखा ही क्या है तुमने ज़िन्दगी में...
अभी तो तुम मुझे किसे और से शादी करते हुए भी देखोगे.
मैं किसी दूसरे शहर में होता तो मजदूरी भी कर लेता..!
मेरे खानदान की इज़्ज़त ने मुझे अपने ही शहर में बेरोजगार बना दिया..!
ये तो वो दर्द थे जो कह डाले हमने
सोच ......
जो छुपाये है वो कितने गहरे रहे होंगे....!!
मुद्दतें हो गयी हैं चुप रहते रहते
कोई सुनता तो हम भी कुछ कहते..!
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