हौसले
ज़िंदगी ने सब कुछ ले-दे कर इक यही बात सिखायी है...
ख़ाली जेबों में अकसर...हौसले खनकते हैं...!
छू लेता शायद..मैं भी उचककर चांद को..
खुदा ने ख्वाहिशें तो दी..मगर हाथ छोटे रखे
अच्छा है आँखों पर पलकों का कफन है,
वरना तो इन आँखो में बहुत कुछ दफन है..!
तुम कृष्ण के वैभवशाली मथुरा जैसी ..
मैं सुदामा की तीन मुठ्ठी चावल प्रिये
मेरे मरने के बाद हम तुम्हे हर एक तारे में नजर आया करेंगे,
तुम दुआ माँग लिया करना हम टूट जाया करेंगे।
गुलाब
कभी चुभ जाऊँ... तो माफ करना...
साहिबा
लफ्ज़ मेरे... गुलाब के पौधे जैसे हैं.
यूं तो कोई सबूत नहीं है कौन किसका क्या है,
ये दिल के रिश्ते तो बस यक़ीन से चलते हैं.
माँ आ गयी बाद में बात करते है,
से माँ वो आ गए बाद में बात करते है तक का सफर ही इश्क़ है
क्या दस्तख़त दूँ तुंम्हे अपने वजूद का .
किसी के ज़हन में आऊं और वो मुस्कुरा दे बस यही काफी है
ये जो आजकल फरेबी 'शराफत' का दस्तूर है,
छोड़िये जनाब मुझे अपनी 'आवारगी' पे गुरूर है।
खुदा ही जाने क्या कशिश है मोहोब्बत में?
एक अन्जान हमारा हक़दार बन बैठता है !
चीखे भी कोई गौर से सुनता नही यहाँ ।
किन लोगो को तुम शेर सुनाने निकले हो
तुम जो रोज रोज संवरते हो किसी और के नाम से ...
एक हम हर रोज बिखर जाते है बस तुम्हारे नाम से !
यकीन तो था उसकी बेवफाई का
मगर
शौक हमें ही था अपनी तबाही का
"यूँ तो ए ज़िन्दगी...तेरे सफर से शिकायते बहुत थी...
मगर दर्द जब दर्ज कराने पहुँचे तो कतारे बहुत थी...!!"
"ज्यादा कुछ नही बदलता उम्र बढने के साथ..,
बचपन की जिद समझौतों मे बदल जाती है..!!"
किस क़दर सीधा, सहल, साफ़ है रस्ता देखो
न किसी शाख़ का साया है, न दीवार की टेक
न किसी आँख की आहट, न किसी चेहरे का शोर
दूर तक कोई नहीं, कोई नहीं, कोई नहीं ।
ज़िम्मेदारी चेहरे की रंगत बदल देती है...
शौक से तो कोई शख्स बुझा-बुझा नहीं रहता.
कभी मतलब के लिए तो कभी दिल्लगी के लिए
हर कोई मोहब्बत ढूंढ रहा है यहाँ अपनी ज़िन्दगी के लिए
अगर आप अपने तकब्बुर का इलाज चाहते है
तो अपने हाथों से एक मुर्दा नहला कर देखिये
अबॉर्शन
सिर्फ गर्भ का हो ये ज़रूरी नहीं कुछ लोग अपने अंदर हँसते खेलते बच्चे को मार देते हैं
मेरी खामोसी को कमजोरी ना समझ
ऐ काफिर ,,
गुमनाम समन्दर ही खौफ लाता है ।
मैं भी एक दिन girlfriend लाऊंगा
हमारे शहर मै फूलो कि कोई दूकान नही
बस एक शख्स के मुस्कुराने से काम चलता है
किसी से कोई भी उम्मीद रखना छोड़ कर देखो,
तो ये रिश्ते निभाना किस क़दर आसान हो जाए
ज़ुल्फ़ों के बादलों के तले चल रहें हैं हम..,
बरसात हो रही है मगर ,जल रहें हैं हम.
डाल कर आदत बैपनाह मोहब्बत की
अब वो कहते है,समझा करो, वक्त नहीं है
कायदे मौहब्बत के हमने भी तोड़ दिए आज
तन्हा बैठे रहे पर उन्हें याद ना किया
नब्ज़ देख कर मरीज़ ए इश्क़ से कहा तबीब नें
तेरे दिल का तो अब खुदा ही हाफिज़
है वो बद मेहफिली के मत पूछ
यार आए हैं, यार बैठे हैं
चीखकर हर ज़िद पूरी करवाता है इकलौता बेटा...
मगर बिटिया गुज़र कर लेती है टूटी पायल जोड़कर
वो कहने लगी,हम उम्र में थोड़े बड़े हैं तुम से...
तो हमने भी कह दिया, तुम थोड़ा ज्यादा प्यार कर लेना.
खुल्ला सांड़ जैसा हो गया है मेरा इश्क भी..
कभी इधर से हट्ट तो कभी उधर से हट्ट्
वो लोग बड़े खुशकिस्मत थे,
जो इश्क को काम समझते थे,
या काम से आशिकी रखते थे...
हम जीतेजी मशरूफ़ रहे,
कुछ काम किया कुछ आशिकी की,
काम इश्क के आड़े आता रहा और
इश्क़ से काम उलझता रहा,
और आखिर तंग आकर हमने,
दोनों को अधूरा छोड़ दिया....
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